17-03-81  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

"इस सहज मार्ग में मुश्किल का कारण और निवारण"

आज विशेष डबल विदेशी बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। डबल विदेशी डबल भाग्यशाली हैं, क्यों? एक तो बापदादा को जाना और वर्से के अधिकारी बने। दूसरा लास्ट में आते भी फास्ट जाए फर्स्ट जाने के बहुत ही उम्मीदवार हैं। लास्ट में आने वाले किसी हिसाब से भाग्यशाली हैं जो बने बनाये पर आये हैं। पहले पहले वाले बच्चों ने मनन किया, मेहनत की, मक्खन निकाला और आप सब मक्खन खाने के समय पर आये हो। आप लोगों के लिए बहुत-बहुत सहज है क्योंकि पहले वाले बच्चे रास्ता तय करके अनु- भवी बन गये हैं और आप सभी उन अनुभवियों के सहयोग से सहज ही मंजिल पर पहुँच गये हो। तो डबल भाग्यशाली हुए ना?

डबल भाग्य तो ड्रामा अनुसार मिला ही है, अभी और आगे क्या करना है?

जैसे अनुभवी महारथी निमित्त आत्माओं ने आप सबकी अनुभवों द्वारा सेवा की है। उसे आप सबको भी अपने अनुभवों के आधार से अनेकों को अनुभवी बनाना है। अनुभव सुनाना सबसे सहज है। जो भी ज्ञान की पाइंट्स है, वह पाइंटस नहीं हैं लेकिन हर पाइंट का अनुभव है। तो हर पाइंट का अनुभव सुनाना कितना सहज है! इतना सहज अनुभव करते हो वा मुश्किल लगता है? एक तो अनुभव के आधार के कारण सहज है, दूसरी बात - आदि से अन्त तक का ज्ञान एक कहानी के रूप में बापदादा सुनाते हैं। तो कहानी सुनना और सुनाना बहुत सहज होता है। तीसरी बात - बाप अभी जो सुना रहे हैं वह आपस सर्व आत्माओं ने पहली बार नहीं सुना है लेकिन अनेक बार सुना है और अब फिर से रिपीट कर रहे हो। तो कोई भी बात को रिपीट करने में, सुनने में या सुनाने में अति सहज होता है। नई बात मुश्किल लगती है लेकिन कई बार की सुनी हुई बातें रिपीट करना तो अति सहज होता है। याद को देखो - कितने प्यारे और समीप सम्बन्ध की याद है। नजदीक के सम्बन्ध को याद करना मुश्किल नहीं होता, न चाहते भी उनकी याद आती ही रहती है। और प्राप्ति को देखो, प्राप्ति के आधार पर भी याद करना अति सहज है। ज्ञान भी अति सहज और याद भी अति सहज। और अब तो ज्ञान और योग को आप अति सिकीलधों के लिए ज्ञान का कोर्स सात दिन में ही समाप्त हो जाता है और योग शिविर 3 दिन में ही पूरा हो जाता। तो सागर को गागर में समा दिया। सागर को उठाना मुश्किल है, गागर उठाना मुश्किल नहीं। आपको तो सागर को गागर में समा करके सिर्फ गागर दी है, बस। दो शब्दों में ज्ञान और योग आ जाता है - ‘‘आप और बाप''। तो याद भी आगया और ज्ञान भी आ गया, तो दो शब्दों को धारण करना कितना सहज है। इसीलिए टाइटिल ही है - सहज राजयोगी। जैसा नाम है वैसे ही अनुभव करते हो? और कुछ इनसे सहज हो सकता है क्या? वैसे मुश्किल क्यों होता है उसका कारण अपनी ही कमजोरी है। कोई न कोई पुराना संस्कार सहज रास्ते के बीच में बंधन बन रूकावट डालता है और शक्ति न होने के कारण पत्थर को तोड़ने लग जाते हैं और तोड़ते-तोड़ते दिलशिकस्त हो जाते हैं। लेकिन सहज तरीका क्या है? पत्थर को तोड़ना नहीं है लेकिन जम्प लगाके पार होना है। यह क्यों हुआ? यह होना नहीं चाहिए। आखिर यह कहाँ तक होगा। यह तो बड़ा मुश्किल है। ऐसा क्यों? यह व्यर्थ संकल्प पत्थर तोड़ना है। लेकिन एक ही शब्द ‘‘ड्रामा'' याद आ जाता तो एक ड्रामा शब्द के आधार से हाई जम्प दे देते। उसमें जो कुछ दिन वा मास लग जाते हैं, उसमें एक सेकेण्ड लगता। तो अपनी कमजोरी हुई या नालेज की?

दूसरी कमजोरी यह होती जो समय पर वह पाइंट टच नहीं होती है वैसे सब पाइंटस बुद्धि वा डायरियों में भी बहुत होती हैं, लेकिन समय रूपी डायरी में उस समय वह पाइंट दिखाई नहीं देती। इसके लिए सदा ज्ञान की मुख्य पाइंटस को रोज रिवाइज करते रहो। अनुभव में लाते रहो, चेक करते रहो और अपने को चेक करते चेन्ज करते रहो। फिर कभी भी टाइम वेस्ट नहीं होगा। और थोड़े ही समय में अनुभव बहुत कर सकेंगे। सदा अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान अनुभव करेंगे। समझा। अभी कभी भी व्यर्थ संकल्पों के हेमर से समस्या के पत्थर को तोड़ने में नहीं लगना। अब यह मजदूरी करना छोड़ो, बादशाह बनो। बेगमपुर के बादशाह हो। तो न समस्या काशब्द होगा न बार-बार समाधान करने में समय जायेगा। यही संस्कार पुराने, आपके दास बन जायेंगे, वार नहीं करेंगे। तो बादशाह बनो। तख्तनशीन बनो। ताजधारी बनो। तिलकधारी बनो।

जर्मन पार्टी से - सहज ज्ञान और योग के अनुभवी मूर्त्त हो? बापदादा हरेक श्रेष्ठ आत्मा की श्रेष्ठ तकदीर को देखते हैं। जैसे बाप हरेक के मस्तक पर चमका हुआ सितारा देखते हैं। वैसे आप भी अपने मस्तक पर सदा चमकता हुआ सितारा देखते हो? सितारा चमकता है? माया चमकते हुए सितारे को कभी ढक तो नहीं देती? माया आती है? मायाजीत जगतजीत कब बनेंगे? आज और अब यह दृढ़ संकल्प करो कि मास्टर सर्वशक्तिवान बन, मायाजीत जगतजीत बन करके ही रहेंगे। हिम्मत है ना? अगर हिम्मत रखेंगे तो बापदादा भी मदद अवश्य ही करेंगे। एक कदम आप उठाओ तो हजार कदम बाप मदद देंगे। एक कदम उठाना तो सहज है ना। तो आज से सब सहजयोगी का टाइटिल मधुबन वरदान भूमि से वरदान ले जाना। यह ग्रुप जर्मन ग्रुप नहीं लेकिन सहज योगी ग्रुप है। कोई भी बात सामने आये तो सिर्फ बाप के ऊपर छोड़ दो। जिगर से कहो - ‘‘बाबा''। तो बात खत्म हो जायेगी। यह ‘‘बाबा'' शब्द दिल से कहना ही जादू है। इतना श्रेष्ठ जादू का शब्द मिला हुआ है। सिर्फ जिस समय माया आती है उस समय भुला देती है। माया पहला काम यही करती है कि बाप को भुला देती। तो यह अटेन्शन रखना पड़े। जब यह अटेन्शन रखेंगे तो सदा कमल के फूल के समान अपने को अनुभव करेंगे। चाहे माया के समस्याओं की कीचड़ कितनी भी हो लेकिन आप याद के आधार पर कीचड़ से सदा परे रहेंगे। आपका ही चित्र है ना - कमल पुष्प! इसीलिए देखो जर्मन वालों ने झाँकी में कमल पुष्प बनाया ना। सिर्फ ब्रह्मा बाप कमल पर बैठे हैं या आप भी बैठे हो? कमल पुष्प की स्टेज आपका आसन है। आसन को कभी नहीं भुलाना। तो सदा चियरफुल रहेंगे। कभी भी किसी भी बात में हलचल में नहीं आयेंगे। सदा एक ही मूड़ होगी - ‘चियरफुल'। सब देख करके आपकी महिमा करेंगे कि यह सदा सहजयोगी, सदा चियरफुल हैं। समझा? कमल पुष्प के आसन पर सदा रहो। सदा चियरफुल रहो। सदा बाप शब्द के जादू को कायम रखो। यह तीन बातें याद करना। जर्मन वालों की विशेषता है जो मधुबन में बहुत प्यार से भागते हुए आकर्षित होते हुए आये हैं। मधुबन से प्यार अर्थात् बाप से प्यार। बापदादा का भी इतना ही बच्चों से प्यार है। बाप का प्यार ज्यादा है या बच्चों का? (बाप का) आपका भी बाप से पदमगुणा ज्यादा है। बाप तो सदा बच्चों को आगे रखेंगे ना। बच्चे बाप के भी मालिक हैं। देखो, आप विश्व के मालिक बनेंगे, बाप मालिक बनायेगा, बनेगा नहीं। तो आप आगे हुए ना। इतना प्यार बाप का है बच्चों से। एक जन्म की तकदीर नहीं है, 21 जन्मों की तकदीर और अविनाशी तकदीर है। यह गैरन्टी है ना?

जर्मन ग्रुप को कमाल दिखानी है, जैसे अभी मेहनत करके गीता के भगवान के चित्र बनाये, ऐसे कोई नामीग्रामी व्यक्ति निकालो तो आवाज निकाले कि हाँ गीता का भगवान शिव है। बापदादा बच्चों की मेहनत को देख बहुत-बहुत मुबारक देते हैं। टापिक बहुत अच्छी चुनी है। इसी टापिक को सिद्ध किया तो सारे विश्व में जयजयकार हो जायेगी। जैसे अभी मेहनत की है वैसे और भी मेहनत करके आवाज बुलन्द करना। विचार सागर मंथन अच्छा किया है, चित्र बहुत अच्छे बनाये।

प्रश्न:- बापदादा हर स्थान की रिजल्ट किस आधार पर देखते हैं?

उत्तर:- उस स्थान का वायुमण्डल वा परिस्थिति कैसी है, उसी आधार पर बापदादा रिजल्ट देखते हैं। अगर सख्त धरनी से कलराठी जमीन से दो फूल भी निकल आये तो वह 100 से भी ज्यादा है। बाबा ‘‘दो को नहीं देखते लेकिन दो भी 100 के बराबर देखते हैं।'' कितना भी छोटा सेन्टर हो, छोटा नहीं समझना। कहाँ क्वालिटी है तो कहाँ क्वान्टिटी है। जहाँ भी बच्चों का जाना होता है वहाँ सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है।

प्रश्न:- किस डबल स्वरूप से सेवा करो तो वृद्धि होती रहेगी?

उत्तर:- रूप और बसन्त - दोनों स्वरूप से सेवा करो, दृष्टि से भी सेवा और मुख से भी सेवा। एक ही समय दोनों रूप की सेवा डबल रिजल्ट निकालेगी।''